अमरकंटक
देर शाम
नर्मदा-उद्गम प्रांगण में
टहलता
हूँ
ठंडे
पथरीले फ़र्श पर
नंगे
पाँव
पत्थर
के छोटे हाथी के नीचे से
सुनते
हैं पापी नहीं निकल सकते ।
देखते-देखते निकल जाते हैं
कई लोग
युवा
पुजारी नीलू महाराज
गाते
हैं नर्मदा आरती
रोज़ वही
उत्साह वही तल्लीनता
सघोष
सांगीतिका
स्वच्छ
उद्गम-कुण्ड में
विसर्जित
करता हूँ
तीनों
ताप
- पद्मनाभ तिवारी
३१ मार्च
२०१५
(स्मृति :- अमरकंटक यात्रा २०११)
[ तीन ताप :- (१) आधि-भौतिक ताप, (२) आधि-दैविक ताप, (३) आधि-आत्मिक (आध्यात्मिक) ताप ]