सर्वाधिकार एवं कॉपीराइट लेखकाधीन. किन्हीं व्यक्ति, स्थान व स्थितियों से कोई साम्य पूर्णतः सांयोगिक है. यह ब्लॉग सिर्फ़ साहित्यिक आस्वाद के लिए है, और इसका अन्य कोई उद्देश्य नहीं है.
Wednesday, September 1, 2010
['कादम्बिनी' मार्च २०१० में प्रकाशित एक पठनीय लेख]
Sunday, August 15, 2010
शिकार पर झपटने के पहले की ख़ामोशी
और शिकार के बाद का सन्नाटा
एक नहीं हैं
- पद्मनाभ तिवारी
उसके बगल से गुजरते हुए मैंने गहरी साँस ली और उसके अनजाने उसकी गंध को अपने में क़ैद कर लिया
इसे कहते हैं प्रेम के पल चुराना
- पद्मनाभ तिवारी
जब मेरा शरीर निस्पंद पड़ा होगा और मैं उसे देख रहा होऊँगा
जब करने को कुछ नहीं और चाहने को बहुत कुछ बचा होगा
तब, वह क्षण कैसे ख़त्म होगा
- पद्मनाभ तिवारी
Tuesday, July 13, 2010
भोपाल गैस विभीषिका का सार-संक्षेप कवि राजेन्द्र अनुरागी की ये पंक्तियाँ बयाँ करती हैं -
जो युवा हैं वे उतने जीवित नहीं हैं जो वृद्ध हैं वे उतने मृत नहीं हैं जो मृत हैं वे उतने अनुपस्थित नहीं हैं जो भविष्य हैं वे उतने असंगत नहीं हैं जो वर्तमान हैं वे उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं
नए-नए मॉडल्स आएँगे कारों कम्प्यूटरों और फ़ोनों के रियल इस्टेट और भी मुनाफ़े का धंधा हो जाएगा शेयर बाज़ार छुएगा रिकॉर्ड ऊँचाइयाँ और नीचाइयाँ मॉल्स और भी सुन्दर कोमल और क्रूर हो जाएँगे धूप चिड़िया मिट्टी नदी और दूर हो जाएँगे इतना सब हो रहा होगा और मैं मर जाऊँगा
अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो जाएगा शिक्षा का हिंसा करार दिया जाएगा देखना या दिखाना ग़रीबी भूख या भिक्षा का
सब अहिंसक हो जाएँगे पवित्र ईमानदार और सुन्दर हो जाएँगे टी. वी. पर "संगीत" के "महायोद्धा" छा जाएँगे हँसने के लिए योगासन करवाए जाएँगे पर शोक मैं मर जाऊँगा
और भी तर्क खोज लिए जाएँगे लोग भी मुतमइन हो जाएँगे कि क्यों उचित है मँहगी उच्च शिक्षा कि क्यों ज़रूरी है हमारी भाषाओं की हत्या क्रिकेटवाले फ़िल्मवाले और बाज़ारवाले हमारे नायक हो जाएँगे जिनके लिए दो ही समस्याएँ रह जाएँगी बीमारियों में एड्स और इन्सानों में सेक्स-वर्कर सत्य की ऐसी-ऐसी खोजें हो रही होंगी और मैं मर जाऊँगा
जाते-जाते मुर्शिद ने कहा – “पर, याद रखना प्रतीक्षा लम्बी लगी तो और लम्बी हो जाएगी और, छोटी लगी तो और भी छोटी”
सदियाँ गुज़र गईं
फिर, सुबह होने से पहले मुरीद के हृदय में सूर्योदय हुआ वह मुस्कुराया, हँसा और हँसता ही रहा किसी ने पूछा – “क्या हुआ” वह बोला – “शाप वस्तुतः वरदान था प्रतीक्षा तैयारी थी अनन्त अनुग्रह की”