Monday, March 8, 2010

कविता ५

जो युवा हैं
वे उतने जीवित नहीं हैं
जो वृद्ध हैं
वे उतने मृत नहीं हैं
जो मृत हैं
वे उतने अनुपस्थित नहीं हैं
जो भविष्य हैं
वे उतने असंगत नहीं हैं
जो वर्तमान हैं
वे उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं


– पद्मनाभ तिवारी

Sunday, March 7, 2010

कविता ४

उम्र नहीं
ज़िन्दगी
आदमी को बूढ़ा बनाती है

– पद्मनाभ तिवारी

कविता ३

और
जहाँ तुम खड़ी थीं
ज़मीन अब भी मुलायम है

– पद्मनाभ तिवारी