Wednesday, April 8, 2015

अमरकंटक

देर शाम
नर्मदा-उद्गम प्रांगण में

टहलता हूँ
ठंडे पथरीले फ़र्श पर
नंगे पाँव

पत्थर के छोटे हाथी के नीचे से
सुनते हैं पापी नहीं निकल सकते ।
देखते-देखते निकल जाते हैं
क‌ई लोग

युवा पुजारी नीलू महाराज
गाते हैं नर्मदा आरती
रोज़ वही उत्साह वही तल्लीनता
सघोष सांगीतिका

स्वच्छ उद्गम-कुण्ड में
विसर्जित करता हूँ
तीनों ताप


- पद्मनाभ तिवारी
३१ मार्च २०१५
(स्मृति :- अमरकंटक यात्रा २०११)


[ तीन ताप :- () आधि-भौतिक ताप, () आधि-दैविक ताप, () आधि-आत्मिक (आध्यात्मिक) ताप ]