Sunday, August 15, 2010

शिकार पर झपटने
के पहले की ख़ामोशी

और शिकार के बाद
का सन्नाटा

एक नहीं हैं


- पद्मनाभ तिवारी
उसके बगल से गुजरते हुए
मैंने गहरी साँस ली
और उसके अनजाने
उसकी गंध को
अपने में क़ैद कर लिया

इसे कहते हैं
प्रेम के पल चुराना


- पद्मनाभ तिवारी
जब मेरा शरीर निस्पंद पड़ा होगा
और मैं उसे देख रहा होऊँगा

जब करने को कुछ नहीं
और चाहने को बहुत कुछ बचा होगा

तब, वह क्षण कैसे ख़त्म होगा


- पद्मनाभ तिवारी