सर्वाधिकार एवं कॉपीराइट लेखकाधीन. किन्हीं व्यक्ति, स्थान व स्थितियों से कोई साम्य पूर्णतः सांयोगिक है. यह ब्लॉग सिर्फ़ साहित्यिक आस्वाद के लिए है, और इसका अन्य कोई उद्देश्य नहीं है.
Sunday, February 21, 2010
कविता २
कितना कुछ हो रहा होगा
और मैं मर जाऊँगा
नए-नए मॉडल्स आएँगे
कारों कम्प्यूटरों और फ़ोनों के
रियल इस्टेट और भी मुनाफ़े का
धंधा हो जाएगा
शेयर बाज़ार छुएगा
रिकॉर्ड ऊँचाइयाँ और नीचाइयाँ
मॉल्स और भी सुन्दर कोमल
और क्रूर हो जाएँगे
धूप चिड़िया मिट्टी नदी
और दूर हो जाएँगे
इतना सब हो रहा होगा
और मैं मर जाऊँगा
अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो जाएगा
शिक्षा का
हिंसा करार दिया जाएगा
देखना या दिखाना
ग़रीबी भूख या भिक्षा का
सब अहिंसक हो जाएँगे
पवित्र ईमानदार और सुन्दर हो जाएँगे
टी. वी. पर "संगीत" के "महायोद्धा" छा जाएँगे
हँसने के लिए योगासन करवाए जाएँगे
पर शोक
मैं मर जाऊँगा
और भी तर्क खोज लिए जाएँगे
लोग भी मुतमइन हो जाएँगे
कि क्यों उचित है
मँहगी उच्च शिक्षा
कि क्यों ज़रूरी है
हमारी भाषाओं की हत्या
क्रिकेटवाले फ़िल्मवाले और बाज़ारवाले
हमारे नायक हो जाएँगे
जिनके लिए दो ही समस्याएँ रह जाएँगी
बीमारियों में एड्स
और इन्सानों में सेक्स-वर्कर
सत्य की ऐसी-ऐसी खोजें हो रही होंगी
और मैं मर जाऊँगा
– पद्मनाभ तिवारी
अचानक मुलाकात
अरे कहिए ! नमस्कार मित्र !
मिले कई बरस बाद मित्र
वाह ! आप मय कार, और
तन का गोलक आकार मित्र
जीपों पर लदे समर्थक ये
करते हैं जय-जयकार मित्र
गठे बदन के अनुयायी
खोंसे कितने हथियार मित्र
एक काम छोटा-सा है
सोचा बोलूँ कई बार मित्र
उसको साले को उठवा लें
होगा मुझ पर उपकार मित्र
– पद्मनाभ तिवारी
मिले कई बरस बाद मित्र
वाह ! आप मय कार, और
तन का गोलक आकार मित्र
जीपों पर लदे समर्थक ये
करते हैं जय-जयकार मित्र
गठे बदन के अनुयायी
खोंसे कितने हथियार मित्र
एक काम छोटा-सा है
सोचा बोलूँ कई बार मित्र
उसको साले को उठवा लें
होगा मुझ पर उपकार मित्र
– पद्मनाभ तिवारी
लॉफ़िंग बुद्धा
जाते-जाते मुर्शिद ने कहा –
“पर, याद रखना
प्रतीक्षा लम्बी लगी
तो और लम्बी हो जाएगी
और, छोटी लगी
तो और भी छोटी”
सदियाँ गुज़र गईं
फिर, सुबह होने से पहले
मुरीद के हृदय में सूर्योदय हुआ
वह मुस्कुराया, हँसा और हँसता ही रहा
किसी ने पूछा – “क्या हुआ”
वह बोला –
“शाप वस्तुतः वरदान था
प्रतीक्षा तैयारी थी
अनन्त अनुग्रह की”
– पद्मनाभ तिवारी
“पर, याद रखना
प्रतीक्षा लम्बी लगी
तो और लम्बी हो जाएगी
और, छोटी लगी
तो और भी छोटी”
सदियाँ गुज़र गईं
फिर, सुबह होने से पहले
मुरीद के हृदय में सूर्योदय हुआ
वह मुस्कुराया, हँसा और हँसता ही रहा
किसी ने पूछा – “क्या हुआ”
वह बोला –
“शाप वस्तुतः वरदान था
प्रतीक्षा तैयारी थी
अनन्त अनुग्रह की”
– पद्मनाभ तिवारी
कविता १
ऑफ़िस में
दो भवनों को जोड़ते
स्काइवॉक
पर जाते समय
पत्तों की खट्टी कसैली
और सड़ती लकड़ी की
बरसाती गंध
अच्छा ही है
ऑफ़िस का माली
आलसी है
बगीचे में
थोड़ा-सा जंगल
बच गया है
– पद्मनाभ तिवारी
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