Sunday, February 21, 2010

लॉफ़िंग बुद्धा

जाते-जाते मुर्शिद ने कहा –
“पर, याद रखना
प्रतीक्षा लम्बी लगी
तो और लम्बी हो जाएगी
और, छोटी लगी
तो और भी छोटी”

सदियाँ गुज़र गईं

फिर, सुबह होने से पहले
मुरीद के हृदय में सूर्योदय हुआ
वह मुस्कुराया, हँसा और हँसता ही रहा
किसी ने पूछा – “क्या हुआ”
वह बोला –
“शाप वस्तुतः वरदान था
प्रतीक्षा तैयारी थी
अनन्त अनुग्रह की”

– पद्मनाभ तिवारी

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